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Ik sufi "FAKEER" hoyea "JUNAID" oh apne jawani de dina vich "GURU" nu labhan chlle gyea | "JUNIAD" ik budde"FAKEER" de koll gyea |
Te "JUNAID" ne keha ki" main sunyea tushi sach(asal) nu jande o |" Mainu v kuch raah dikhaou |
Budde "FAKEER" ne "JUNAID" bll dekhyea te keha : Tu sunyea e ki main janda ha | Tu nhi janda ki main janda ha |
"JUNAID" ne keha , tuhade lyi mainu koi anubhuti nhi hoyi | Par mainu tushi oh raah dikhaou jitho main apne guru nu khoj lamma|
Oh budda"FAKEER" hasyea te kehan lagyea | Jime teri marji, hun tainu bahut bhatakna te labhna paouga | Ki tu emme kar sakda hai |
"JUNAID" ne keha , Usdi chinta na tushi karro | Main ik janam kya anek(bahut) janam tak guru nu labh sakda ha | Bus tushi mainu oh tareeka dus dawo| Ki guru kime dikhda hai|
Kime de kapde paye hon gye |
"FAKEER" ne keha, "JUNAID" hun tu sarre teertha te ya jime"MAKKA","MADINA","KASHI","GIRNAR","GANGA" othe jake tu bahut sadhuyean nu dekhe ga | Jihna dyea akhan(eyes)
ch parkash(light) houga | Baddi-baddi ohna dyea jattamma(hair) hon gye | Te ohda ik hath asman di taraf howega |Atte oh ik nim de darkhat(tree) de thalle ikkla baitha howega |
Tu ohde koll jakke "KASHTURI" di sugandh pamme ga
Kehnde ne "JUNIAD" 20 saal(years) tak yatra karda reha | Ik jagah to duji jagah |Bahut oukhe oukhe raha(rashte) to hoke gupat jagah b gyea|
Jithe kitte v sunyea ki othe "Guru" rehnda hai | "JUNAID" othe othe v gyea| Lekin na ta ohnu oh tree milyea te "KASHTURI" di sugandh |
Na hi kisse dyea akhan ch roshni | "JUNAID" jis veyaktitab(imagine) kar reha c oh millan wala hi nhi c | Ohde koll ik banyea-banayea formula c |
Jis to nal di nal answer le linda c |"Oh mera guru nhi"| Te aggye nikal janda c |
20 Saal(years) baad "JUNAID" ik khas tree de kol pahounchyea | Othe ik"FAKEER" baitha c.Othe "KHASTURI" di khusbu v a rhi c| Hawa vich shanti c |
Ohna dyea akhan vicho rosni jhalak rhi c ."JUNAID" ne sochyea eh ohi "GURU" e jisnu oh labh reha c |Pichle 30 years to , "JUNAID" "GURU" de charna ch gir gyea,
te kehan lgga gurudev main tuhanu 20 years to labh reha c |
"GURU" ne utar(answer) ditta, main b tainu 20 years to intzar(waiting) kr reha c | Dekh eh ohi jagah e jitho tu chlle gyea c , Jaddo tu puchyea c "GURU" de warre|
Te baad vich tu bhatkda reha | Atte main tera ethe intzar karda reha |Ki tu kaddo amega| "JUNAID" ron(crying) lag pyea, te bolyea , ki tushi emme kyu kitta |
Emme da majak kyu kitta, Tushi pehle hi din dus dine ki main hi tera "GURU" ha, 20 yeras asi tuhanu labhan nu ehder to ohder la ditta, Tushi mainu rokyea kyu nhi|
Us "FAKEER" ne jawab ditta, ki jaddo tak tere koll oh "GURU" nu dekhan wali akh hi nhi c, te na hi tere koll oh tadap c "GURU" nu milan wali, ohdo tak kuch nhi ho sakda c,
Ehna 20 years ne teri bahut help kiti, Mainu labhan vich , dekhan vich | Main ohi "FAKEER" ha........
"HO SAKTA HAI GURU TUMHARE BILKULL KAREEB HO"
एक सूफी फकीर हुआ जुन्नैद वह अपनी जवानी के दिनों में जब गुरु को खोजने चला तो। वह एक बूढ़े फकीर के पास गया। और उससे कहने लगा “मैंने सुना है आप सत्य को जानते है।” मुझे कुछ राह दिखाईये। बूढ़े फकीर ने एक बार उसकी और देखा और कहा: तुमने सूना है कि मैं जानता हूं। तुम नहीं जानते की मैं जानता हूं।
जुन्नैद ने कहा: आपके प्रति मुझे कुछ अनुभूति नहीं हो रही है। लेकिन बस एक बात करें मुझे वह राह दिखायें जहां में अपने गुरु को खोज लूं। आपकी बड़ी कृपा होगी। वह बूढ़ा आदमी हंसा। और कहने लगा। जैसी तुम्हारी मर्जी: तब तुम्हीं बहुत भटकना और ढूंढना होगा। क्या इतना सहसा और धैर्य है तुम में।
जुन्नैद ने कहा: उस की चिंता आप जरा भी नहीं करे। वो मुझमें हे। मैं एक जनम क्या अनेक जन्म तक गुरु को खोज सकता हूं। बस आप मुझे वह तरीका बता दे। की गुरु कैसा दिखाता होगा। कैसे कपड़े पहने होगा।
फकीर ने कहा: तो तुम सभी तीर्थों पर जाओ मक्का, मदीना, काशी गिरनार…वहां तुम प्रत्येक साधु को देखा। जिसकी आंखों से प्रकाश झरता होगा। बड़ी-बड़ी उसकी जटाये बहुत लम्बी होगी। और एक हाथ वह आसमान की तरफ किये होगा। और वह एक नीम के वृक्ष के नीचे अकेला बैठा होगा। तुम उसके आस पास कस्तूरी की सुगंध पाओगे।
कहते है जुन्नैद बीस वर्ष तक यात्रा करता रहा। एक जगह से दूसरी जगह। बहुत कठिन मार्ग से चल कर गुप्त जगहों पर भी गया। जहां कही भी सुना की कोई गुरु रहता है। वह वहां गया। लेकिन उसे न तो वह पेड़ मिला और न ऐसी सुगन्ध ही मिली। न ही किसी की आँखो से प्रकाश झाँकता दिखाई दिया। जिस व्यक्तित्व की खोज कर रहा था वह मिलने वाला ही नहीं था। और उसके पास एक बना-बनाया फार्मूला ही था। जिससे वह तुरंत निर्णय कर लेता था। “वह मेरा गुरु नहीं है”। और वह आगे बढ़ जाता।
बीस वर्ष बाद वह एक खास वृक्ष के पास पहुंचा। गुरु वहां पर था। कस्तूरी की गंध भी महसूस हो रही थी उसके आस पास। हवा में शांति भी थी। उसकी आंखे प्रज्वलित थी प्रकाश से। उसकी आभा को उसने दुर से ही महसूस कर लिया। यही वह व्यक्ति है जिस की वह तलाश कर रहा था। पिछले बीस वर्ष से कहां नहीं खोजा इसे। जुन्नैद गुरु के चरणों पर गिर गया। आंखों से उसके आंसू की धार बहने लगी। “गुरूदेव मैं आपको बीस वर्ष से खोज रहा हूं।”
गुरु ने उत्तर दिया, मैं भी बीस वर्ष से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं। देख जहां से तू चला था ये वहीं जगह हे। देख मेरी और। जब तू पहली बार मुझसे पूछने आया था। गुरु के विषय में। और तू तो भटकता रहा। ओर में यहां तेरा इंतजार कर रहा हूं। की तू कब आयेगा। मैं तेरे लिए मर भी नहीं सका। की तू जब थक कर आयेगा। और यह स्थान खाली मिला तो तेरा क्या होगा। जुन्नैद रोने लगा। और बोला। की आपने ऐसा क्यों किया। क्या आपने मेरे साथ मजाक किया था। आप पहले ही दिन कह सकते थे मैं तेरा गुरु हूं। बीस वर्ष बेकार कर दिये। आप ने मुझे रोक क्यों नहीं लिया।
बूढ़े आदमी ने जवाब दिया: उससे तुझे कोई मदद न मिलती। उसका कुछ उपयोग न हुआ होता। क्योंकि जब तक तुम्हारे पास आंखे नहीं है देखने के लिए। कुछ नहीं किया जा सकता। इन बीस वर्षों ने तुम्हारी मदद की है, मुझे देखने में। मैं वहीं व्यक्ति हूं। और अब तुम मुझे पहचान सके। अनुभूति पा सके। तुम्हारी आंखे निर्मल हो सकी। तुम देखने में सक्षम हो सके। तुम बदल गये। इन पिछले बीस वर्षों ने तुम्हें जोर से माँज दिया। सारी धूल छंट गई। तुम्हारा में स्फटिक हो गया। तुम्हारे नासापुट संवेदन शील हो उठे। जो इस कस्तूरी की सुगंध को महसूस कर सके। वरना तो कस्तूरी की सुगंध तो बीस साल पहले भी यहां थी। तुम्हारा ह्रदय स्पंदित हो गया है। उसमें प्रेम का मार्ग खुल गया है। वहां पर एक आसन निर्मित हो गया है। जहां तुम आपने प्रेमी को बिठा सकते हो। इस लिए संयोग संभव नहीं था तब।
तुम स्वय नही जानते। और कोई नहीं कहा सकता कि तुम्हारी श्रद्धा कहां घटित होगी। मैं नहीं कहता गुरु पर श्रद्धा करो। केवल इतना कहता हूं कि ऐसा व्यक्ति खोजों जहां श्रद्धा घटित होती है। वहीं व्यक्ति तुम्हारा गुरु है। और तुम कुछ कर नहीं सकते इसे घटित होने देने में। तुम्हें घूमना होगा। घटना घटित होनी निश्चित है लेकिन खोजना आवश्यक है। क्योंकि खोज तुम्हें तैयार करती है। ऐसा नहीं है खोज तुम तुम्हारे गुरु तक ले जाये। खोजना तुम्हें तैयार करता है ताकि तुम उसे देख सको। हो सकता है वह तुम्हारे बिलकुल नजदीक हो।
ओशो
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