STORY
Ik din jaddo sikandar apne badde ghode par kitte ya reha c ta nadi de kinnare usne ik sufi fakeer Dayojinus nu jo ki aram nall nadi de kinnare pyea c| Us fakeer dyean akhan band c atte oh aram nall baitha anand maan reha c.Badshah Sikandar ne chikde hoye keha - "Tu ik ghinoune janwar di tarah e| Tere sareer te kapde da ik v tukda mhi haiga | Par fer v tu enna anand nall te moujh ch jee reha e| Dayojinus ne Sikandar nu dekhyea atte istarah da sawal puchyea jo ik raje to puchan di koi v himmat nhi c kar sakda|
Dayojinus ne Sikandar nu keha -" Ki tu v sadde warga banna chouhna e ?"Dayojinus di is gall ne sikandar nu andar tak hilla ke rakh ditta - " Sikandar ne keha ki kya karna pwega ?"
Dayojinus bolyea -" Pehla apne faltu ghode to niche uttar atte jo ehne mehngye kapde paye hoye ne ohna nu uttar ke nadi vich bha de| Nadi da eh kinara apne dona lyi bahut hai| Sab cheeza te mera haq nhi haiga| Te hun tu v ethe masti kar jeewan da anand le sakda e?"Sikandar ne keha -" Main v tere warga banna chouhna par tere wargye kam karan da mere vich himmat nhi |"
Ik pall de lyi Sikandar Dayojinus de najdeek ayea. par fir ohne is gall nu tall ditta| Par Dayojinus di gall ne Sikandar nu andar tak hilla dita| Jaddo Sikandar da time nedde a gyea ta Sikandar ne ik ajeeb hukam ditta| Sikandar ne keha ki mere lyi ik taboot banou, Taboot de dona taraf ched(hole) hone chahide ne , Jis vicho mere dono hath taboot to bahar rehan| Hatn bahar rakh ke main loka nu dasna chouhna a ki Sikandar mahan v is dunyea to khalli hath gyea| Ik ehi akalmandh wali gall c , Jo Sikandar ne apne jiwan vich kitti c | Jo gall sufi fakeer Dayojinus ne khi c |
एक दिन जब सिकंदर राजसी कपड़ों में अपने बड़े से घोड़े पर आया तो उसने डायोजिनिस को नदी किनारे लेटे देखा। उसकी आंखें बंद थीं और वह रेत में परमानंद से भरपूर होकर लोट रहा था।सिकंदर ने चिल्लाते हुए कहा – “तुम घिनौने जानवर की तरह हो। तुम्हारे शरीर पर कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं है। तुम किस बात पर इतना आनंदित हो रहे हो ? ”डायोजिनिस ने सिकंदर को देखा और एक ऐसा सवाल पूछा जिसे एक राजा से पूछने की हिम्मत किसी की नहीं हो सकती।
उसने कहा – “क्या तुम भी मेरी तरह बनना चाहते हो ?”
इस बात ने सिकंदर को अंदर तक झकझोर दिया और उसने कहा – “मुझे क्या करना होगा ?”
डायोजिनिस बोला – “अपने फालतू घोड़े से उतरो और राजसी कपड़े उतारकर नदी में फेंक दो। नदी का यह किनारा हम दोनों के लिए काफी है। सब चीजों पर सिर्फ मेरा ही हक थोड़े ही है। तुम भी यहां मस्ती से लेट सकते हो। तुम्हें कौन रोक रहा है ? ”
सिकंदर ने कहा – “मैं भी तुम्हारी तरह बनना चाहता हूं लेकिन तुम्हारे जैसे काम करने का मुझमें साहस नहीं है।”
एक पल के लिए सिकंदर नजदीक आया था, लेकिन फिर उसने इस बात को टाल दिया। इस घटना के कारण एक खास किस्म की अनासक्ति उसके भीतर पैदा हो गई। युद्ध के प्रति उसका जुनून खत्म हो गया, लेकिन वह अपनी आदतों से जूझता रहा और फिर भी युद्ध लड़ता रहा। जैसे ही उसका जुनून खत्म हुआ, उसकी ऊर्जा भी जाती रही और अंत में उसकी मौत हो गई। मौत से ठीक पहले उसने अपने लोगों को एक बड़ा अजीब निर्देश दिया। उसने कहा, मेरे लिए जो ताबूत बनाया जाए, उसके दोनों तरफ दो छेद होने चाहिए, जिससे कि मेरे दोनों हाथ ताबूत से बाहर रहें। हाथ बाहर रखकर मैं लोगों को यह दिखाना चाहता हूं कि सिकंदर महान भी इस दुनिया से खाली हाथ ही लौटा है। यह एक ही अक्लमंदी की बात थी, जो सिकंदर ने अपनी जीवन में की।
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